* पिता नहीं है तो क्या हुआ, चाचा ताऊ तो जिंदा हैं *

 * पिता नहीं है तो क्या हुआ, चाचा ताऊ तो जिंदा हैं *


आज की शाम भी रोज की तरह ही थी। घर के अधिकतर सदस्य अपने-अपने कमरों में थे। मैं रसोई में अपना काम निपटा रही थी। अचानक बाहर से मुझे मेरे पति की आवाज सुनाई दी। शायद वो मुझे बुला रहे थे। अभी थोड़ी देर पहले ही वो अपने जिम से घर लौटे थे। आखिर उनकी आवाज सुनकर गैस को धीमी आंच पर करके मैं रसोई से निकलकर अभी बाहर आई ही थी।

इससे पहले कि मैं उनसे कुछ पूछती एक जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर आकर लगा। कुछ पल के लिए सब कुछ सुन्न सा हो गया। ना मुझे कुछ सुनाई दे रहा था, ना ही मुझे कुछ दिखाई दे रहा था। मैं जमीन पर एक तरफ गिरी पड़ी थी। पर उस एक थप्पड़ की गूंज पूरे माहौल में गूँज चुकी थी। घर के हर कमरे में वो गूँज सुनाई दे रही थी।

घर के बाकी सदस्य देवर और ससुर जी भी निकल कर बाहर हॉल में आ गए थे। वहीं जहां ये थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा था। वहीं जहाँ सासू मां अपनी विजयी मुस्कान के साथ अपने बेटे के पौरूष पर इतरा रही थी। आखिर उनके बेटे ने उनके कलेजे को ठंडक प्रदान जो कर दी थी।


सचमुच आज जब उनका बेटा मेरे गाल पर थप्पड़ लगाकर मुझे कमजोर साबित कर रहा था, तब सासु मां को अपने बेटे पर गर्व महसूस हो रहा था। आखिर वो उनके दूध का कर्ज़ जो उतार रहा था। एक जिम जाने वाला बंदा जिसके अच्छे खासे बाइसेप्स हो, वो अगर थप्पड़ मारे तो कैसा लगता है? बस वही हाल मेरा हो रहा था। मैं अस्त-व्यस्त अवस्था में जमीन पर पड़ी हुई थी। मुझे ये भी होश नहीं था कि मेरा दुपट्टा कहीं और जाकर गिरा है।

मुझे लगा कि कोई तो मेरे लिए बोलेगा पर ये देखकर ससुर जी बोले,

" बिल्कुल शर्मो हया नहीं है। यहाँ देवर ससुर सब लोग खड़े हैं और इसके सिर से दुपट्टा गायब है। लोग क्या कहेंगे। राम-राम! घोर कलयुग है"

कहते-कहते ससुर जी भी वापस अपने कमरे में चले गए।उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं था कि इस घर में मेरे साथ क्या हो रहा है? उन्हें सिर्फ इसकी चिंता थी कि उनकी बहू का दुपट्टा उनके सामने सिर पर नहीं था। ससुर जी की बात सुनकर मेरे पति ने जबरदस्ती मुझे बाहों से पकड़कर उठाया और खींचते हुए कमरे में ले गए और ले जाकर पलंग की तरफ धकेल दिया।



सब कुछ इतना जल्दी-जल्दी हुआ कि कुछ समझ ही नहीं आया। कुछ देर बाद मुझे होश आया। लेकिन जब तक होश आया तब तक स्वाभिमान तार-तार हो गया। मुझे तो यह भी नहीं पता कि मुझे थप्पड़ पड़ा क्यों था? आखिर ऐसी क्या गलती कर दी थी मैंने?


अभी तक तो मेरी शादी को सिर्फ एक महीना ही हुआ है। पर यह एक महीना कोई सपने जैसा नहीं है। एक एक्सीडेंट में माता पिता की मौत के बाद लोगों के कहने पर फटाफट अपनी जिम्मेदारी निभाने के चक्कर में चाचा ताऊ ने मेरी शादी इस घर में कर दी। क्योंकि उस संयुक्त परिवार में बेटी मैं अकेली ही थी। चाचा और ताऊ के दो दो बेटे थे।

पुश्तैनी जायदाद में पिता का भी हिस्सा था। हालांकि वो हिस्सा अभी भी मेरे नाम पर था। ये बात मेरे ससुराल वाले बहुत अच्छे से जानते थे, इसलिए खुद यह लोग रिश्ता लेकर आए थे। उन्हें लगा था कि दहेज में वो पूरा हिस्सा मुझे मिलेगा। पर मैंने उसे लेने से मना कर दिया कि अभी मुझे उसकी जरूरत नहीं है। बस यही बात इन लोगों को कचोट गई।

ये अलग बात है कि मेरे चाचा ताऊ ने वो हिस्सा मेरे लिए संभाल के रख लिया पर ये बात मेरे ससुराल वालों को पता नहीं।

यहाँ आई तो ससुराल में सासू मां का बोलबाला था। घर में कहने को तीन पुरुष हैं, पर सब उन्हीं की जबान बोलते हैं।

थोड़ी देर बाद सासु मां की बाहर से आवाज आई,

"अरे ओ महारानी! कब तक आराम फरमाती रहेगी। बाहर आकर रोटियां तो सेंक। यहाँ सब कब से भूखे बैठे हैं"

आखिर रोती सिसकती मैं अपने दुपट्टे को सही करती हुई बाहर आई। मुझे देखकर मेरे पति ने कहा ,

" अब तो सबक मिल गया होगा। आज के बाद खबरदार मेरी मां को किसी काम के लिए कहा तो। वो यहाँ किसी की नौकरानी नहीं है। मां बाप ने कुछ संस्कार नहीं सिखाए इसे "

पति की बात सुनकर मन घृणा से भर गया। ऐसा कौन सा काम कह दिया मैंने सासु माँ को करने के लिए, जिसकी मुझे यह सजा दी गई।

तभी याद आया कि सासु माँ को शाम को चाय की तलब हुई थी, तो चाय बनाकर उनके कमरे में देने गई तो सासु मां कमरे में नहीं थीं। इसलिए चाय टेबल पर रख आई थी। रसोई में आकर आटा गूँथ ही रही थी कि सासू मां ने चाय के लिए आवाज लगाई। आटे से हाथ सने होने के कारण सिर्फ इतना ही तो कहा था कि आपके कमरे में टेबल पर ही रखी है, ले लीजिए।

भला ये भी कोई काम हुआ? पचपन साल की औरत इतनी बड़ी बुढ़िया हो गई कि चाय का प्याला भी उठा ना पाई और बेटे से शिकायत कर दी। और बेटा भी इतना समझदार कि इतनी सी बात के लिए थप्पड़ खींचकर लगा दिया। अभी एक महीने पहले तक इनके घर में ऐसे कौन से नौकर चाकर लगे हुए थे, जो इनकी मां काम नहीं करती थी। बहू के आते ही अचानक क्या हो गया?

मन में कई विचार उबाल मार रहे थे। अगर जवाब नहीं दिया तो जिंदगी भर भुगतना होगा। पूरे शरीर की नस नस में गुस्सा दौड़ रहा था। इतने में सासु मा ने फिर कहा,

" अरे क्या बुत बनी खड़ी हुई है। जा जाकर रोटी सेक"

मुझे वहां खड़ा देखकर पति भी मेरे पास आकर बोले,

" माँ लगता है इसको अभी भी समझ में नहीं आया। वो तो ट्रेलर था, इसको अभी पूरी पिक्चर दिखाता हूँ। माँ जरा दरवाजे के पास जो लाठी रखी है वो देना। आज इसे बता ही देता हूं कि ससुराल में कैसे रहते हैं"


इससे पहले कि ये कुछ कर पाते मैंने खींचकर थप्पड़ इनके गाल पर रसीद कर दिया। मेरी हरकत से सभी लोग हैरान हो गए थे। कुछ देर के लिए उस थप्पड़ की गूंज ने सभी को चुप करा दिया। पर उस चुप्पी तोड़ते हुए मैंने कहा,

" अपनी बूढ़ी मां से काम कराते हो तुम, शर्म नहीं आती या संस्कार बेच खाए। तुम्हारे बूढ़ी मां ने कुछ सिखाया नहीं तुमको कि ऐसी बूढ़ी औरत से काम नहीं कराते। अरे जिसको एक कप उठाना भारी हो गया उससे तुम लाठी जैसी भारी चीज उठवा रहे हो"


मेरी बात सुनकर गुस्से से मेरा पति अपने गाल सहलाते हुए मेरी तरफ देख रहा था। तभी सासू मां फूँकार कर बोलीं,

" तेरी इतनी हिम्मत कि मेरे बेटे पर हाथ उठाया? कैसी औरत है तू? अपने पति की इज्जत नहीं करती। बेहूदा औरत, लोक लाज के लिए ही सही अपने हाथ को काबू में नहीं रख सकती थी"

" सासू मां, आप तो बड़ी महान हैं। जब बेटा बहू को थप्पड़ मार रहा था तो वो उसकी मर्दानगी थी। अब बहू ने पलट कर थप्पड़ मारा तो बेहूदगी। मैं बर्दाश्त करने वालों में से नहीं हूं"

तभी ससुर जी भी चिल्लाते हुए बोले,

" इसे घर से धक्के मार कर निकालो। मां-बाप तो हैं नहीं। देखते चाचा तो कब तक घर में रखेंगे। शर्मो हया बेच खाई इसने "

"अरे चाचा ताऊ तो रख लेंगे। लड़की की शादी की है, बेचा नहीं हमने। हिम्मत कैसे हुई हमारी बच्ची पर हाथ उठाने की। मां बाप नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि जो आएगा वो तुम करोगे"

अचानक पीछे से ताऊजी की आवाज आई। पलटकर देखा तो चाचा जी ,ताऊ जी और उनके बेटे खड़े थे। उन्हें अचानक घर में देखकर सबकी बोलती बंद हो गई। तभी चाचा जी बोले,

" हम तो सोच रहे थे कि त्यौहार नजदीक है, अपनी बेटी को लिवा लाते हैं। पर यहां तो माहौल ही कुछ और है। हमने बेटी मारने पीटने के लिए नहीं दी आप लोगों को"

" अरे नहीं नहीं, आपको कुछ गलतफहमी.."

ससुर जी ने बात को संभालने की कोशिश की, पर ताऊ जी ने हाथ दिखा कर रोक दिया,

" ले जा रहे हैं हमारी बेटी को। अब सीधे कोर्ट में ही मिलना। बहुत बड़ी गलती की तुमने इसे बिन मां बाप की बच्ची समझ कर। गलती हमारी थी कि हमने लोगों के कहने पर इसकी शादी जल्दी कर दी"

सासू मां ने अपना तुरुप का पत्ता फेंका,

" हां हां ले जाओ। बिल्कुल ले जाओ। घर बैठी बेटी बोझ ही होती है। जब लोग ताने मारेंगे ना, तब पता चलेगा। क्या कहोगे लोगों से कि आपकी बेटी अपने पति को थप्पड़ मारकर आई है"

" लोग क्या कहेंगे अब उससे हमें फर्क नहीं पड़ता। अब हमारी बेटी इस घर में नहीं रहेगी"

कहकर ताऊ जी ने मुझसे मेरा सारा सामान बँधवाया और उसी समय मुझे लेकर रवाना हो गए। आखिर कुछ दिनों की मशक्कत के बाद मुझे उस घर से छुटकारा मिल ही गया। आज मैं अपने आगे की पढ़ाई कर रही हूँ। और जब तक आत्मनिर्भर नहीं हो जाऊंगी, तब तक ताऊ जी और चाचा जी ने मेरी शादी की बात करने तक से मना कर दिया।


आभार -लक्ष्मी कुमावत

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